DESK: पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से आरक्षण कोटे को 50 से बढ़ाकर 65 फीसदी करने के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने राज्य सरकार को 12 जनवरी, 2024 तक जवाब देने का निर्देश दिया है. बिहार आरक्षण कोटे में बदलाव को लेकर गौरव कुमार व अन्य की ओर से जनहित याचिका दायर की गई है.
मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की. अदालत में अब इस संबंध में दायर की गई सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ करेगी. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि पिछले महीने बिहार विधानसभा द्वारा पारित कानून में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण के अलावा, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया है जबकि कानून इसकी अनुमति नहीं देता है. ऐसा करना असंवैधानिक है.
याचिकाकर्ता की ओर से प्रसिद्ध इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तर्क दिया गया है. जिसमें आरक्षण की कुल सीमा को 50 फीसदी तक सीमित कर दिया था और उसे केवल अत्यंत असाधारण मामलों में ही बदला जा सकता था.
याचिकाकर्ता ने सर्वे को राजनीति से प्रेरित बताया है
इसके साथ-साथ याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत सर्वे के हवाला देते हुए सिर्फ पिछड़े वर्ग की आबादी में बढ़ोतरी के आधार पर यह कदम उठाया है. सर्वे में ओबीसी और ईबीसी की कुल आबादी 63.13 फीसदी बताई गई है. याचिकाकर्ता ने सर्वे को राजनीति से प्रेरित भी बताया है.
विपक्ष ने जातिगत सर्वे पर उठाया था सवाल
बता दें कि बिहार में नीतीश कुमार सरकार की ओर से कराए गए हालिया जातिगत सर्वे को लेकर बीजेपी ने बड़ा हमला बोला था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित बीजेपी के नेतृत्व वाले राजग के नेताओं ने आरोप लगाया था कि सरकार ने तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए यादवों और मुसलमानों की संख्या को बढ़ाकर दिखाया गा है. हालांकि, बिहार के डिप्टी सीएम और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बीजेपी के आरोपों का खंडन कर चुके हैं.