Kanwar Yatra : कांवड़ पर निकलने से पहले आखिर क्यों कांवड़िये करते हैं 11 बार उठक-बैठक? जानें इसके पीछे का राज!
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Kanwar Yatra Rituals: भगवान शिव के भक्त सावन के महीने में कांवड़ यात्रा निकालते हैं. इस यात्रा में भाग लेने वालों को ‘कांवरिया’ कहा जाता है. शिव भक्त गंगा से पवित्र जल बर्तन में भरकर नंगे पैर लंबी दूरी तय करते हैं. गंगा में पवित्र स्नान करने के बाद भक्त अपने कंधों पर कांवर लेकर चलते हैं.
कांवर एक बांस की संरचना होती है जिसके सिरे पर घड़े बंधे होते हैं. कांवरिये यह यात्रा नंगे पैर और गंगाजल से भरे बर्तनों के साथ तय करते हैं, जो भगवान शिव के प्रति भक्ति को दर्शाता है. यात्रा के दौरान वे भगवा वस्त्र पहनते हैं. इस दौरान कई लोग उपवास भी रखते हैं.
ऐसे प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ
लाखों कांवरिये शिवजी का आशीर्वाद पाने के लिए उत्तराखंड में हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री, बिहार के सुल्तानगंज, उत्तर प्रदेश के अयोध्या, वाराणसी और प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थानों स्थानों से कांवड़ में गंगा जल लेकर लौटते हैं. फिर यह जल शिव मंदिरों में चढ़ाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने में शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बनाएं रखते हैं.
क्यों लगाते हैं 11 बार उठक-बैठक
कांवड़ यात्रा पर निकलने से पहले पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. जिसका एक रूप दंग बैठक लगाना भी है. जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि कांवड़िये यात्रा शुरू करने से पहले 11 बार उठक-बैठक लगाते हैं. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से उन्हें रास्ते में किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता.
यूं मांगे अपनी गलतियों की माफी
यह प्रक्रिया जल भरने से पहले ही की जाती है. दरअसल, यह शिव भक्तों का भोलेनाथ से माफी मांगने का एक तरीका है, ताकि उनकी किसी भी गलती को वह माफ करें और उनकी यात्रा को बिना किसी परेशानी के पूरी करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. topbihar.con इसकी पुष्टि नहीं करता है.)