धर्म

मूर्तियों की क्यों की जाती है प्राण प्रतिष्ठा, जानिए पूजन विधि और महत्व

सनातन धर्म में पाठ-पूजा का विशेष महत्व है. शास्त्रों में भी पूजा-पाठ और अनुष्ठान का वर्णन है. मंदिरों के अलावा घर पर भी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. व्यक्ति अपने घर पर किसी न किसी देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित करते हैं. शास्त्रों के अनुसार, बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए और इस प्रकार की अनदेखी करने से व्यक्ति को पूजा का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है. लेकिन क्या आपको पता है कि मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है और इसकी प्रक्रिया क्या होता है. पूरी जानकारी विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ये लेख…

धर्म गुरुओं के अनुसार, मंदिर या घर पर मूर्ति स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता हैं. सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का विशेष महत्व होता है. मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा अवश्य की जानी चाहिए. साल 2024 में 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में भी प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन किया जाएगा. इसमें रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. इसकी शुरुआत 16 जनवरी से होगी. इस दिन से ही प्राण प्रतिष्ठा हेतु अनुष्ठान किए जाएंगे. धार्मिक मत है कि प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात मूर्ति रूप में उपस्थित देवी-देवता की पूजा-उपासना की जाती है.

प्राण प्रतिष्ठा का महत्व

हिंदू धर्म में प्राण प्रतिष्ठा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसके जरिए मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया जाता है. ये काम अनुष्ठान के जरिए होता है और इसमें भजन और मंत्रों के पाठ के बीच मूर्ति को पहली बार स्थापित किया जाता है. वैसे प्राण शब्द का अर्थ है जीवन शक्ति और प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना. प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ है, जीवन शक्ति की स्थापना करना या देवता को जीवन में लाना.

हिंदू धर्म में प्राण प्रतिष्ठा से पहले किसी भी मूर्ति पूजा के योग्य नहीं मानी जाती है बल्कि निर्जीव मूर्ति मानते हैं. प्राण प्रतिष्ठा के जरिए उनमें शक्ति का संचार करके उन्हें देवता में बदला जाता है. इसके बाद वो पूजा और भक्ति के योग्य बन जाती है. फिर लोग इन मूर्तियों की पूजा कर सकते हैं. ऐसा माना जाता है कि प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया के बाद ही मंदिर में भगवान के रूप की एक मूर्ति स्थापित की जाती है और उसकी पूजा की जाती है. जब भक्त किसी भी ऐसे स्थान पर पूजन करते हैं तब उनकी मनोकामनाओं को पूर्ति होती है.

इन मंत्रों के साथ होती है प्राण प्रतिष्ठा

मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं, तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।

ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव, प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।

ये है प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया

प्राण प्रतिष्ठा के लिए सबसे पहले देवी-देवताओं की प्रतिमा को गंगाजल या विभिन्न (कम से कम 5) नदियों के जल से स्नान कराया जाता है. इसके पश्चात, मुलायम वस्त्र से मूर्ति को पोछने के बाद देवी-देवता के रंग अनुसार नए वस्त्र धारण कराए जाते हैं. इसके बाद प्रतिमा को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजित किया जाता है और चंदन का लेप लगाया जाता है. इसी समय मूर्ति का खास तरीके से सिंगार किया जाता है और बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. इस समय पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है और अंत में आरती कर लोगों को प्रसाद वितरित किया जाता है.

ऐसी मान्यता है कि मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करने से ईश्वर की पूजा करने से लोगों को भय से मुक्ति मिलती है. सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है और कष्टों को दूर करने का मौका मिलता है. यही नहीं शांति की तलाश में भी भक्त ईश्वर की शरण में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करते हैं. मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से व्यक्तिगत जीवन से बाधाओं को दूर करने का मौका मिलता है. प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने वालों को रोग दोष से भी मुक्ति मिलती है.

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